राज्य में मध्यमा की पढ़ाई करने वाले स्कूलों छात्र-छात्राओं की संख्या सवा दो लाख से घट कर मध्यमा 86 सौ पर पहुंच गयी है। इससे मध्यमा को पढ़ाई में वाले संस्कृत स्कूलों का भविष्य खतरे में हैं। छात्र- छात्राओं को संख्या में आयी भारी कमी से मध्यमा की परीक्षा लेने वाला बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड के तो समक्ष तो कर्मचारियों और शिक्षको को वेतन देने के भी पैसे नहीं है।राज्य में बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड की स्थापना1981 में हुई थी बोर्ड में अधिकारी-कर्मचारियों के 134 पद मैट्रिक स्वीकृत हैं। हालांकि, वर्तमान में कार्यरत तो अधिकारी-कर्मचारियों की संख्या 40 के करीब है।
आपको बता दे कि वर्ष 1990 में मध्यमा को परीक्षा में बैठने वाले परीक्षार्थियों की संखया सवा दो लाख पर पहुंच गयी। हालांकि, 1992, 1993 एवं 1994 में परीक्षार्थियों की संख्या मात्र पांच हजार के करीब पहुंच गयी। ऐसा परीक्षा में हुई सख्ती की वजह से हुआ था। उसके अगले ही साल से परीक्षार्थियों की संख्या फिर बढ़नी शुरू हुई। वर्ष 2007 में परीक्षार्थियोंकी संख्या फिर दो लाख पर पहुंच गयी।
लेकिन, उसके बाद से परीक्षार्थियों की संख्या इसलिए घटनी शुरू हो गयी, क्योंकि प्रस्तावित संस्कृत स्कूलों से छात्र-छात्राओं के सीधे परीक्षा फॉर्म भरने पर रोक लगा दी गयी। प्रस्तावित संस्कृत स्कूलों के लिए बोर्ड द्वारा यह प्रावधान किया गया ।कि उसके छात्र-छत्राओं के परीक्षा फॉर्म प्रस्वीकृत संस्कृत स्कूलों के माध्यम से भरे जायेंगे। इस व्यवस्था ने प्रस्तावित संस्कृत स्कूलों को उदासीन कर दिया।
इस बीच केंद्र की नौकरियों में मध्यमा हुआ योग्यताधारियों के दरवाजे बंद हो गये, जो पहले हुए खुले हुये थे। राज्य में भी शिक्षक नियोजन नियमावली लागू होने के बाद सामान्य शिक्षकों को प्रस्ताव बहाली में मध्यमा योग्यता वालो के लिए दरवाजे बंद हो गये। सिर्फ संस्कृत शिक्षक पद के लिए ही मध्यमा की योग्यता सिमट कर रह गयी।वर्ष 2018 में मध्यमा में परीक्षार्थियों की संख्या घट कर 12000 पर पहुंच क्रमश: 200 और 2000 पर पहुंची। लेकिन वर्ष 2021 में परीक्षार्थियों की संख्या घटकर मात्र 8600 पर आ गयी। इससे बोर्ड की माली हालत बिगड़ गयी है।
स्थिति के मद्देनजर बोर्ड ने गत मार्च में यह प्रस्ताव पारित कर राज्य सरकार को भेजा कि वह पांच करोड़ 30 लाख रुपये का बोर्ड का बार्षिक व्यय वहन करे। बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड कर्मचारी संघ के महासचिव भवनाथ झा ने बताया कि संघ द्वारा भी शिक्षा विभाग को कई बार लिखा गया है, लेकिन बोर्ड को मांगी गयी पांच करोड़ 30 लाख रुपये की राशि नहीं मिली है, जबकि वेतन के अभाव में कर्मचारी इस कोरोनाकाल में आर्थिक संकट के गंभीर दौर से गुजर रहे हैं।
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